बीच का रास्ता नहीं होता
बीच का रास्ता नहीं होता --कृष्णमोहन कवि केदारनाथ सिंह की एक प्रसिद्ध कविता है, 'ठण्ड से नहीं मरते शब्द'। इसकी शुरूआती पंक्तियाँ हैं: "ठण्ड से नहीं मरते शब्द वे मर जाते हैं साहस की कमी से कई बार मौसम की नमी से मर जाते हैं शब्द" ज़ाहिर है, यहाँ 'साहस की कमी', शब्द का प्रयोग करने वालों की विशेषता है, जबकि 'मौसम की नमी' स्पष्ट कथन के बजाय दुविधा की सुविधाजनक भाषा के आम चलन का बयान है। जिस तरह नमी सूखे और भीगे, ठण्डे और गर्म के बीच की अवस्था है वैसे ही भाषा में बीच का रास्ता चुनने वालों की ओर इशारा है। बीच का यह रास्ता भी,अक्सर, साहस की कमी की वजह से ही चुना जाता है। इसलिए यहाँ साहस की कमी को 'शब्द' की मृत्यु का प्रमुख कारण मानने में कोई हिचक नहीं होनी चाहिए। यह बात बिल्कुल सही है कि किसी भी बाहरी या आंतरिक निषेध के चलते जब किसी शब्द का प्रयोग उसके वास्तविक अर्थ में नही...