Posts

Showing posts from August, 2023

ग़ालिबे खस्ता के बग़ैर

ग़ालिबे खस्ता के बग़ैर                        --- कृष्णमोहन  ग़ालिब को अब आमतौर पर हिन्दुस्तान का अंतिम मध्ययुगीन और पहला आधुनिक शायर मान लिया गया है। महाकवि इक़बाल ने जब उन्हें गेटे का समकक्ष कहा था तो उनका आशय यही था। आगे चलकर शम्सुर्रहमान फ़ारूक़ी और सिब्ते हसन जैसे विचारकों ने स्पष्ट शब्दों में इसकी घोषणा की। 'दीवाने ग़ालिब' के नागरी संस्करण की भूमिका में अली सरदार जाफ़री लिखते हैं—'ग़ालिब ने मुग़ल संस्कृति की आख़िरी बहार और नयी औद्योगिक संस्कृति के उभरते हुए चिह्न और उनकी कैफ़ियतों को अपने व्यक्तित्व में समो लिया था।' स्पष्ट है कि लेखक यहाँ अपनी नवजागरणवादी चेतना के कारण औपनिवेशिक संस्कृति को औद्योगिक संस्कृति बता रहा है क्योंकि उसके बगैर ग़ालिब में आधुनिक चेतना की कल्पना करना भी उसके लिए असम्भव है। उपनिवेश-पूर्व भारतीय परम्परा में आधुनिकता के आंतरिक तत्त्वों की मौजूदगी को लेकर एक छोर उन विचारकों का है जो आमतौर पर इससे इन्कार करते हैं, और दूसरे छोर पर रामविलास शर्मा हैं जो ऋग्वेद से ही आधुनिकता के तत्त्वों को खोज कर इसे सांस्कृतिक राष्ट्रवाद का पर्याय बना डालते हैं।