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कुँवर नारायण:निचली सतहों की ख़बर

"एक अजीब दिन"  शीर्षक कविता देखें:  "आज सारे दिन बाहर घूमता रहा  और कोई दुर्घटना नहीं हुई। आज सारे दिन लोगों से मिलता रहा  और कहीं अपमानित नहीं हुआ।  आज सारे दिन सच बोलता रहा  और किसी ने बुरा न माना। आज सब का यक़ीन किया  और कहीं धोखा नहीं खाया।  और सबसे बड़ा चमत्कार तो यह  कि घर लौट कर मैंने किसी और को नहीं अपने ही को लौटा हुआ पाया।" कुछ मायनों में यह कुँवर नारायण की एक प्रतिनिधि कविता है। संक्षिप्तता, व्यंजकता, पारदर्शिता और सिनिकल निराशा का मिश्रण।शुरुआती पंक्तियों में किसी आधुनिक व्यक्ति के जीवन की विडंबना है। वह एक ऐसे समाज में रहता है जहां बाहर घूमने का सहज अर्थ है दुर्घटना, लोगों से मिलना यानी अपमान झेलना, सच बोलना यानी विरोधी बनाना, और दूसरों का यक़ीन करना मतलब धोखा खाना। यही हस्बमामूल दिनचर्या है, जिसका नतीजा है कि वह आमतौर पर दुर्घटना, अपमान, विरोध और धोखा की स्थितियों से बचने की कोशिश करता है। ऐसी परिस्थिति में उसे अपने मनोभावों को दबाकर लोगों से बनावटी व्यवहार करना पड़ता है। नतीजतन उसका आत्म उससे दूर होता जाता है। यहां तक