#धूल_की_जगह
साहित्य, सभ्यता और मनुष्यता की जगह रज़ा पुस्तक माला योजना के तहत राजकमल प्रकाशन से पिछले साल छप कर आये महेश वर्मा के पहले कविता-संग्रह 'धूल की जगह' को पढ़ते हुए हिंदी कविता की अग्रगामी दिशा का पता चलता है। उनकी कविताओं को पढ़ते हुए हमें वर्तमान दौर के रचनाकर्म के कुछ बुनियादी आग्रह, सरोकार और उनकी फलश्रुतियों की छानबीन करने का अवसर मिलता है। यहाँ हम उनकी कुछ कविताओं को पहले पूरा उद्धृत करेंगे, फिर संक्षेप में उनका विश्लेषण करके उनके आशयों तक पहुँचने की कोशिश करेंगे।इस कड़ी में पहली कविता "सुखान्त" लेते हैं: "सुखान्त सूखे हुए आँसुओं और अनगिन दुःख के बाद आया ठोकरें खाती रही स्त्री, उसने अपमान सहे यह छोटी नौकरी न लग जाती तो आत्महत्या करने ही वाला था सहनायक नायक भाग दो में अपनी कथा कहेगा। पहले संदेह आया फिर दुःख फिर गहरा शोक आया तब तक दम साधे झाड़ियों में छुपा रहा सुखान्त उसे अंतिम गोली, संयोग और ईश्वर की मदद हासिल है तो अंत में ऐसे आया सुखान्त आने की ताक में था जैसे : घुसपैठिया।" साहित्य में व्याप्त रूढ़िबद्ध रुचियों और अभिव्यक्तियों क...