मुक्तिबोध की कविता 'ब्रह्मराक्षस'
मुक्तिबोध की कविता 'ब्रह्मराक्षस' जो उलझी थी कभी आदम के हाथों वो गुत्थी आज तक सुलझा रहा हूँ ----- फ़िराक़ गोरखपुरी मुक्तिबोध ने साहित्य को सभ्यता-समीक्षा कहा था। मुक्तिबोध के काव्यसंसार में प्रस्तुत सभ्यता आधुनिक व भारतीय भी है, और समूचे इतिहास में फैली हुई मानव-सभ्यता भी। आदिम युग से आधुनिकता तक की मनुष्यता की यात्रा की व्यथा-कथा कहने वाली उनकी एक महत्वपूर्ण कविता है---'ब्रह्मराक्षस'। हिंदी भाषी लोक में प्रचलित मान्यता है कि ब्राह्मण जाति का कोई व्यक्ति जब अपनी किसी गम्भीर भूल-ग़लती के कारण प्रेतयोनि में पड़ा रह जाता है, यानी उसकी आत्मा को शांति नहीं मिलती तो, उसे ब्रह्मराक्षस कहते हैं। इस कविता में ब्रह्मराक्षस भारत की सामंती परम्परा के अग्रगामी तत्वों का प्रतिनिधित्व करता है, जिसमें अपने आधुनिक रूपांतरण की संभावना थी लेकिन फलीभूत नहीं हो सकी। ग़ौरतलब ...